छाया छूती अँगुलियाँ
‘छाया छूती अँगुलियां’ श्री बृजभूषणजी का पाँचवा काव्य-संकलन है । इसमे कवि ने आधुनिक दौर के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को रेखांकित किया है । उनकी अनूठी शैली में सदैव शब्दों से अधिक सुरों का गुंजन समाहित रहता है और कटाक्ष भी विवादी सुरों की नाई यहाँ-वहाँ अपनी छटा बिखेरते है । बृजभूषणजी द्वारा अपने काव्य में सोचे गए प्रश्न उनके मौलिक चिंतन को उजागर करते है, साथ ही नई दिशा और नए सोच की और भी इंगित करते है । यकीनन् बृजभूषणजी का यह नवीनतम काव्य-संकलन हिंदी साहित्य को बहुत कुछ मने में समृद्ध करेगा | – डॉ. भूपेन्द्रसिंह देथा |
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घर की ओर जाती पगडंडियाँ
श्री बृजभूषण काबरा की काव्य कृति ‘घर की और जाती पगडंडियाँ’ की कविताए जहां एक और उनके वर्तमान, उनके परिवेश, उनके जीवन से बहुत गहेरे तक जुड़ी लगते है वहां इनमें उन साधना जन्य क्षणो के आवेश की भी झलक मिलती है जो इन कविताओं को क्षण से दूर शाश्वत सत्य की और ले जाती है | – डॉ. जबरनाथ पुरोहित |
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प्रतीक्षा की घड़ियाँ
पण्डित बृजभूषण जी के विषय मे यदि मे कहू की ” व्यक्ति एक गुण अनेक ” तो भी अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा | सरलता के साअत साथ भावुकता का अद्भुत संयोग उनके जीवन मे है | जिसका आभास उनकी प्रस्तुत रचनाओ से स्पष्ट होता है | काव्य लेखन की निरंतरता से बृजभूषणजी का जीवन पारदर्शी हो गया है | प्राउत्तिमय जीवन बिताते यूए निवृत्तिमय जीवन बिताना यही है उनका संबल, यही उनका पाहेय और यई उनकी बाट बड़ी शक्ति | – डॉ. रामप्रसाद दाधीच ‘प्रसाद’ |
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अन्तर में गूंजती शहनाइयाँ
स्वरजगत से शब्दजगत में प्रवेश के पिछे उनका जॉ ध्येय है वाह है अपने लम्बे जीवन के भावों-अनुभावों, विचारो को शब्द के मध्यम से अभिव्यक्त कर्ण और उन्हे व्यष्ठी से समस्थी तक सम्प्रेशित कर्ण | संगित का स्वर अध्यापी ब्रह्मनाद है पर वाह अत्यंतिक अमृत और सॉकसम होटा है , वाह आत्मा को उधर्वमान कर किसी अलौकिक और दिव्यस्तर पर ले जाने मे अवश्य समर्थ है किन्तु जीवन-जगत की सच्चाएन और अनुभावो के यतर्थ को समाजिक तक सम्प्रेशित करने मे असमर्थ है | श्री कब्रा के शब्दो मे ही की ‘कई बातें अंकही रह जायेंगी, शयद वे मेरे साह ही चली जायेंगी | इसिलिये शब्दो की दुनियान मे कदम रखा राहा हुन | इन काव्य पंक्तियों मे उनका मन्तव्य स्पष्ट है | प्रत्येक रचना धर्मी कवि को स्वयम को पुचना भी चाहिये की वाह कविता क्योम लिखता है और किसके लिये लिखटा है | – प्रियदर्श शर्मा |
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आँगण मे झाकती खिड़कियाँ
बृज भूषण काबरा एक एसे व्यक्ति हे जिन्होने अपने जीवन के हर पहेलू में नये आयाम स्थापित किये, अपने ढंग की स्थापित मान्यताओं के उपर न चल कर बल्कि अपनी नई मान्यताएँ स्थापित की | जन्म एसे परिवार मे हुआ जिसमे एस्वर्य, विद्या, संगीत, धर्म और दर्शन शास्त्र जैसी विचित्र उपलब्धियाँ उनको विरासत मे अनजाने मे ही मिलीं |
किन्तु उन्होने अपना पथ स्वयं निर्धारित किया क्योकि ईतना कुछ जो उनमे समाया हुआ था, जिसमे वे भी अनजान थे वह किसा समय किस तरह स्फुरित होगा यह उन्हे मालूम नहीं था | बचपन मे संगीत बिल्कुल नहीं सीखा | पढ़ाई समाप्त करने के बाद संगीत आरंभा किया वह भी एक एसे वाधा से जो पहेले किसी ने शास्त्रीय संगीत मे नहीं बजाया था, गिटार | – शिव कुमार शर्मा |
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Random Thoughts On Education
Shri kabra is a blend of a technocrat, industrialist and a music maestro par excellence. His ancestry and family background have provided him a fertile ground to have grown into a person with very modern outlook but who at the same time is deeply rooted in indian ethos, music and culture. His essays included in this volume bear testimony to this. He in these essays deals with the extreams 3/4 from indian clasical music to the roll of the computers. His grasp of the subject matter is excellent and the presentation of the thought is not only lucid but appealing and quite convincing also. Presented in simple but very effective language his essays provide varied dimensions to the education in india. He not only discouse the issues and problems of education but also offers plausible solution of them. – S. N. Balya |
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